बंद करे

जिले के बारे में

ऐतिहासिक जिले पानीपत का अतीत गौरवशाली और वर्तमान उज्जवल है। तीन महासंग्रामों की रणस्थली रहे इस जिले के मुख्यालय के लगभग चारों और छोटे-बडे उद्योगों का जाल सा बिछा हुआ है। शेरशाह सूरी राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर चवालीस पर स्थित होने के कारण इसका महत्व कुछ मामलों में राज्य के अन्य जिलों से कम नही आंका जा सकता। इसकी सीमा तीन ओर से हरियाणा के अन्य जिलों से घिरी है, तो पूर्व दिशा में यमुना पार उत्तर प्रदेश के साथ सटी हुई हैं। इस ऐतिहासिक औद्योगिक नगर में हरियाणा के विभिन्न क्षेत्रों के श्रमिकों के अलावा उत्तर प्रदेश के श्रमिक भी बड़ी संख्या में आकर बस गए हैं। इसलिए श्रमिक आबादी दिनों-दिन बढ़ती जा रही है।

पानीपत 31 अक्टूबर 1989 तक करनाल जिले का भाग था। एक नवम्बर 1989 को इसे अलग से जिले का दर्जा दे दिया गया । तब करनाल की असन्ध तहसील भी इसके अन्तर्गत आती थी। एक जनवरी 1992 को जिले के पुनर्गठन के दौरान इसमें से असन्ध तहसील निकाल दी गई। औद्योगिक पृष्ठभूमि में निरन्तर विकसित होने वाला यह जिला रोजगार का असीम भंडार है। हरियाणा ही नहीं, अपितु समूचे भारत के उद्यमी, इंजीनियर, बेरोजगार कारीगर, कलाकार, शिल्पी और श्रमिक यहां रोजगार की तलाश में आते हैं और यही बस जाते हैं।

स्वतन्त्रता संग्राम में भूमिका

भारत का स्वतंत्रता संग्राम व्यवहारिक रूप से 1857 ईसवी में मेरठ सेना द्वारा बरतानिया के खिलाफ विद्रोह से शुरू हुआ और पूरे देश में फैला। स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा की जनता का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस जिले के नौल्था क्षेत्र के 16 गांवों ने राजस्व देने से इन्कार कर गांवों में तैनात बरतानवी अधिकारियों को दूर खदेड़ दिया। कुछ देश भक्तों ने कम्पनी सेनाओं से दो-दो हाथ करने हेतु दिल्ली की तरफ कूच किया। वापसी पर पानीपत में कलैक्टर के शिविर पर आक्रमण करने की योजना बनाई, जो कि दुर्भाग्यवश असफल रही। फिर भी समालखा पर संग्रामियों ने कब्जा कर लिया, जिसे बरतानियों ने जींद व पटियाला की सेनाओं की मदद से वापिस हासिल कर लिया। पानीपत शहर, विशेषकर बू अलीशाह कलन्दर का मकबरा ऐसी गतिविधियों का केन्द्र था। 1938 ई0 में डॉक्टर गोपीचन्द भार्गव ने पानीपत तहसील की समालखा मण्डी में एक बड़ी कान्फ्रैंस की अध्यक्षता की, जिसके फलस्वरूप कांग्रेस वालंटियर व स्वतंत्रता सेनानियों ने गांव-गांव जाकर लोगों से सम्पर्क साधने का अभियान शुरू किया।

विभाजन

पानीपत और समालखा जिला के दो उपमंडल हैं, जिन्हें आगे पांच तहसीलों में विभाजित किया गया है: पानीपत, समालखा, इसराना, बापौली और मतलौडा। इस जिले में चार विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं: पानीपत ग्रामीण, पानीपत सिटी, इसराना और समालखा। जो कि करनाल लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।

जनसांख्यिकी

2011 की जनगणना के अनुसार पानीपत जिले की आबादी 1,202,811 है, जिले में जनसंख्या घनत्व 949 निवासी प्रति वर्ग किलोमीटर है। 2001-2011 दस साल बाद इसकी जनसंख्या वृद्धि दर 24.33% थी। पानीपत में प्रत्येक 1000 पुरुषों के लिए 861 महिलाओं का लिंग अनुपात है तथा 77.5% साक्षरता दर है।

उद्योग

पानीपत शहर अपने पारंपरिक हथकरघा उद्योग के लिए जाना जाता है, जो कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। पानीपत में थर्मल पावर स्टेशन की पहली इकाई 1 नवंबर 1979 को शुरू हुई थी, वर्तमान में इसकी 8 इकाइयां हैं जिनकी 1360 मेगावाट की क्षमता है। यह पर्दे, चादरों, कंबल और कालीनों के लिए प्रसिद्ध है। अगर हम शिक्षा के बारे में बात करते हैं, तो पानीपत में सभी प्रमुख स्कूल और कॉलेज हैं।

जलवायु एवं तापमान

यहां गर्मियों में अधिक गर्मी और सर्दियों में सर्दी रहती है। दिसम्बर-जनवरी मास में कभी-कभी तापमान घटकर न्यूनतम 4.4 सेल्सियस तक रह जाता है, जबकि जून मास में तापमान 42.2 सेल्सियस तक पहुंच जाता है।

जिले से निकलने वाली नदियों की स्थिति

पानीपत जिले के निकट यमुना ही एकमात्र नदी है। यह नदी भी जिले की पूर्वी सीमा के साथ-साथ बहती है। वर्षा ऋतु में यमुना नदी का औसत डिस्चार्ज एक लाख क्युसेक रहता है। परन्तु जब कभी पहाड़ों पर अधिक वर्षा हो जाती है तो यमुना नदी का डिस्चार्ज तीन से चार लाख क्युसेक हो जाता है। जिसके कारण इसके तट पर बसे जिले के गांवों पर खड़ी फसलों को अत्यधिक हानि पहुंचती है। जिले में जल निकास हेतु उत्तम प्रबंध किया गया है। यहां बाढ का मुख्य कारण यमुना नदी में पानी का आकस्मिक बढ जाना या ताजेवाला हैडवर्कस से ज्यादा पानी का छोड़ा जाना है। दूसरा कारण निचले हिस्सों में ज्यादा वर्षा से पानी भर जाना भी है। पत्थरगढ, राणामाजरा, नवादा, अद्यमी, गढी बेसक, जलालपुर, उरलाना जैसे 13 गांवों को रिंग बांध बनाकर बाढ से सुरक्षा प्रदान की गई है।

पानीपत ड्रेन पानीपत शहर के मध्य में बहती है और वर्तमान में शहर का गन्दा पानी व सीवर इत्यादि इसमें डाला जाता है। इस कारण यह हमेशा गन्दे पानी से व स्लैज से भरी रहती है। इसे साफ करने के लिए एक पोवलीन मशीन व एक ड्रेन लाईन लगाई गई है। नहर द्वारा सिंचाई के लिए इस जिले में दो मुख्य नहरें पुरानी दिल्ली ब्रांच एवं पेरलल दिल्ली ब्रांच तथा चार मुख्य डिस्ट्रीब्यूट्रियां गोहाना, इसराना, नारायणा और अहुलाना डिस्ट्रीब्युट्री के नाम से हैं। जिले में दो मुख्य नहरें हैं। नहरों को सुचारू रूप से चलाने के लिए एवं पानी को ठीक ढंग से हिस्सेदारों तक पहुंचाने के लिए नहरों की सफाई एवं मुरम्मत प्रति वर्ष करवाई जाती है। इन कार्यों को करवाने के परिणामस्वरूप सभी नहरों के अंतिम छोर तक लगभग ठीक ढंग से सिंचाई होती है। पेयजल के मामले में यह जिला धनी है। यहां का जल अन्य जिलों की अपेक्षा मीठा है। जन स्वास्थ्य विभाग ने यमुना नहर और टयूबवैलों के माध्यम से यहां के हर कस्बे और गांव में पेयजल की सुविधा पहुंचाई है। यहां कोई भी ऐसा गांव नहीं है जो पेयजल समस्या से ग्रस्त हो।

कृषि

जिला पानीपत में कृषि योग्य भूमि 2664398 हैक्टेयर है। नहरी सिंचाई 26 हजार हैक्टेयर भूमि पर होती है तथा नलकूप द्वारा 77124 हैक्टेयर भूमि पर सिंचाई होती है। रबी की मुख्य फसल गेहूं व खरीफ की मुख्य फसल धान है। कृषि विभाग खरपतवारनाशक दवाइयों, बीजों, खादों और कृषि यंत्रों जैसे विभिन्न कृषि इन्पुट्स पर अनुदान देकर सहायता कर रहा है। इसी प्रकार कृषि विभाग ने जिले में ईंधन एवं देशी खाद की बचत हेतु प्राकृतिक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए बायोगैस प्लांट स्कीम लागू की है, जिसपर अनुदान भी दिया जा रहा है। उचित मात्रा में खाद प्रयोग करने के लिए किसानों के खेतों की मिट्टी एवं ट्यूबवैलों का पानी कृषि विभाग की प्रयोगशाला में टैस्ट किए जाते हैं। पानीपत जिला में धान 72000 हैक्टेयर, गन्ना 7300 हैक्टेयर, मक्का 255 हैक्टेयर, चारा ज्वार 6000 हैक्टेयर क्षेत्र में फसल उगाई जाती हैं तथा बाजरा, कपास व अरहर की फसल लगभग शुन्य के बराबर होती है। इसके अतिरिक्त लगभग 400 हैक्टेयर क्षेत्र में आलु, गोभी, टमाटर, शिमला मिर्च, खीरा, ककड़ी, मिर्च, तोरी, घिया, टिंडा, पेठा, लहसुन, अदरक, प्याज व अरबी आदि सब्जियां उगाई जाती है।

स्त्रियों और पुरूषों के पहनावे और वेशभूषा

यमुना के साथ लगते क्षेत्र के लोग यू.पी. में पहनी जाने वाली धोती व टोपी का इस्तेमाल करते हैं, जबकि महिलाएं सलवार कुर्ता पहनती है। जिला सोनीपत के साथ लगते इलाके के लोग धोती कुर्ता अथवा पायजामा कमीज पहनते हैं तथा टोपी के साथ बुजुर्ग पगड़ी बांधते हैं। शिक्षित नवयुवकों में पैंट शर्ट व महिलाओं में सलवार कमीज का प्रचलन है।